काव्य भाषा : अनिश्चित यात्रा है जिंदगी – डॉ ब्रजभूषण मिश्र भोपाल

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अनिश्चित यात्रा है जिंदगी

दुःख से परे भी है जिन्दगी
दुःख से भरी है,जिन्दगी
आपाधापी,हलचल है,
शान्त, कोलाहल है जिन्दगी

नदी के बहाव सी है,जिन्दगी
सरपट दौड़ती,ठहरती सी भी कभी
कठिन चढ़ाइयों भरी, भारी बोझ सी
तो कभी सरल,उतार का प्रवाह है जिन्दगी

जीना है तो,रह खुश,इस सा बह
सीख ले,अनुभव निज ,कह
राही बन,साथी चुन ,यात्रा तूँ कर
ब्रज,अनिश्चित यात्रा है ये जिन्दगी

डॉ ब्रजभूषण मिश्र
भोपाल

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