काव्य भाषा : दोहे – हमीद कानपुरी

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हमीद के दोहे

बदल रहे कुछ लोग अब,आज़ादी का वर्ष।
भीख नहीं कहते कभी, करते यदि संघर्ष।

दुनिया का सबसे बड़ा,अल्लाह कारसाज़।
पुख्ता रख ईमान को,पढ़ते रहो नमाज़़।

भारत के तुम प्रेस का,उन्नत रखना भाल।
चाहे जैसा वक्त हो,सच लिखना हर हाल।

होती ज़मीन से शुरू,उस पर ही अवसान।
ऊँचीकभीउड़ान पर,मत करनाअभिमान।

रब की नज़रों में अगर, होना है नायाब।
ख़िदमत करके ख़ल्क़की,लूटोबड़ेसवाब।

फूलों जैसा हर तरफ़, फैलाओ मकरंद।
जन सेवा का जोश मत, होने देना मंद।

निष्फलता में हौसला,रखना है आसान।
नरम रहे होकर सफल,वो होता विद्वान।

सबकुछदेगारबउसे,पक्काअगर यक़ीन।
बिन यक़ीन का आदमी,पाता है तौहीन।

हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
179, मीरपुर,छावनी, कानपुर-4

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