काव्य भाषा : रसोई घर – सरस्वती ,पटना

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रसोई घर

कहते हैं कि सारा घर ही तुम्हारा है,
पर धिरे धिरे पता चलता है कि,
सिर्फ रसोईघर ही हमारा है।
सारा जीवन हम घर को सजाते हैं,
मगर ज्यादातर पल हम रसोई में बिताते हैं।
इस भ्रम में हम सारा जीवन बिताते हैं,
फिर भी सूकून कहा पाते हैं।
रसोई एक सहेली जैसी हों जाती है,
पल पल की साक्षी कहलाती है,
जवानी से बुढ़ापे तक साथ निभाती है,
जाने क्या क्या कह जाती है।
जो औरतें काम से आतीं हैं,
पहले रसोई में ही जाती है,
सबके लिए खाना बनाती है,
चैन कहां पातीं है।
मां से बात करें या किसी दोस्त से,
रसोई से अच्छी जगह कोई नहीं है।
कौन सी ऐसी औरत है जो,
रसोई में कभी रोई नहीं है।
हर पल हमारे अस्तित्व का एहसास दिलाती है,
इसलिए रसोईघर सिर्फ हमारी कहलाती है।
कहते हैं कि सारा घर ही तुम्हारा है,
पर धिरे धिरे पता चलता है कि,
सिर्फ रसोईघर ही हमारा है।

सरस्वती ,पटना

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