समीक्षा : काव्य संग्रह ‘ये बड़ी बात है’ : बनावटी इंटेलेक्चुअलिज्म नहीं है शेफालिका की कविताओं में – डा.कुमार संजय ,रांची

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पुस्तक समीक्षा

काव्य संग्रह ‘ये बड़ी बात है’ : बनावटी इंटेलेक्चुअलिज्म नहीं है शेफालिका की कविताओं में – डा.कुमार संजय ,रांची

यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आजकल कवि ज्यादा हो गए हैं पाठक कम। इसके कई कारण हैं। कवियों की कई श्रेणियां हो गई हैं । एक श्रेणी है जो अपने आप को सुपर बुद्धिजीवी मानता है। उनकी कविताएं इतनी क्लिष्ट होती हैं, जो आम पाठकों के पल्ले नहीं पड़ती। एक ग्रुप ऐसा है जो कविताओं के नाम पर कुछ भी अनाप-शनाप परोस देता है। फिर कुछ तुकांत श्रेणी वाले कवि हैं, जिनका पूरा ध्यान ज्ञान तुकबंदी पर होता है, अर्थ अनर्थ हो जाए, इस से इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।
ऐसे कवियों की संख्या अभी भी बहुत कम है जो सही अर्थ में कविताएं लिख रहे हैं, उसी श्रेणी में आती हैं श्रीमती शेफालिका सिन्हा।
अभी उनकी नई पुस्तक प्रकाशित हुई है-ये बड़ी बात है। इस संकलन में इनकी 34 कविताएं हैं । इन कविताओं में बनावटी इंटेलेक्चुअलिज्म नहीं है और न ही ये जबरदस्ती लिखी हुई कविताएं हैं। ये सहज कविताएं हैं, इनके विषय हमारे आसपास की घटनाएं हैं, आसपास के लोग हैं जो हमारी जिंदगी के हिस्सा हैं।
इनकी पहली कविता है ‘किसान’ । इस कविता की इन पंक्तियों पर थोड़ा गौर कीजिए –
मन में उमंग
आंखों में सपने
होंगे उनके अपने
जी तोड़ मेहनत
कर रहे किसान हैं
समर्थन मूल्य और
किसी भी आंदोलन से
ये अनजान हैं।
कितनी सहज भाषा में हकीकत को बयान किया गया है। भ्रूण हत्या पर लिखी हुई कविता ‘विदाई’ दिल को छू लेती है –
साथ चलकर समय के
सफर तय किया है
मंजिल मिली है
शोहरत मिली है
हर भूमिका में है योग्यता दिखाई
फिर, आज भी लोग करते क्यों
कोख में ही विदाई ?
इस संकलन में जितनी भी कविताएं हैं सभी में अपनापन है, ऐसी बातें हैं जो हर किसी के दिल को छू ले। इनकी एक कविता है ‘पैमाना’। जरा इन पंक्तियों पर गौर करें
काश, होता है एक पैमाना
जिस पैमाने में
खुशी की कुछ बूंदे डाल
व्यक्ति गटक जाता
और फिर
हो कैसा भी गम
छूमंतर हो जाता।
काश सच में ऐसा हो पाता ।इस संकलन की कविताएं सहज हैं,सरल भाषा में हैं, जिनमें पाठकों को उद्वेलित और आकर्षित करने की क्षमता है ।
जीवन रुकने का नहीं
आगे बढ़ने का नाम है,
कठिनाइयां कितनी भी हों
खुश रहने का काम है।
संकलन में ऐसी कविताएं भी हैं, जो सकारात्मक उर्जा से ओतप्रोत हैं।

डा.कुमार संजय
निदेशक ‘स्पेनिन’
रांची, झारखंड।

लेखिका:शेफालिका सिन्हा
मुद्रण:नोशन प्रेस
मूल्य:एक सौ पच्चीस रुपए
आमेजन,किंडल, फ्लिपकार्ट,नोशन पर उपलब्ध।

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