

गौओं की पूजा हो गई अब मामा जी गौमाता की सुरक्षा करें
सारा विश्व जानता है कि हमारे देश भारत वर्ष का सनातन धर्म अपनी धरती को, नदियों को और गौओं को भी माता कह के बुलाता है. वहीँ सारा प्रदेश अपने मामा को जानता है और मामा भी अपने भांजों भांजियों के लिए बहुत कुछ करते रहता है और उसका प्रचार भी करता है. अब अगर इस लिहाज़ से देखें तो प्रदेश का मुखिया प्रिय मामा सनातन धर्म द्वारा स्थापित वसुंधरा, नदियों और गौओं का भाई ही हुआ.
वसुंधरा और नदियों को छोड़ देते हैं क्योंकि उनकी पीड़ा की कोई चीख हम किसी को सुनाई नहीं देती लेकिन गौओं की दयनीयता और पीड़ा तो साक्षात दिखाई देती है. यह भी सही है कि उसकी पीड़ा को पूरी तरह से हर पाना हमारे बस में नहीं है, क्योंकि हम अपने मोहल्ले और सड़क पर आवारा मवेशी की तरह बैठी गौओं को भगाने या उन्हें कष्ट देने देने में कहीं न कहीं भगवान से डरते हैं.
नगरीय प्रशासन द्वारा बार बार गौ पालकों को चेताया जाता है कि वो उन्हें बांध कर या अपने परिसर में ही रखें लेकिन तथाकथित गौओं से लाभ ले रहे उनके पालक उनका दोहन करने के बाद उन्हें सीधे सादे धर्मप्रेमियों की रोटी या जूठन के भरोसे उनका पेट भरने के लिए छोड़ देते हैं. यह भी सच हैं सबसे ज्यादा दुर्गति तो बैलों की होती है, क्योंकि उन्हें रोटी देने में लोग थोडा कतराते हैं.
लेकिन सरकार के पास हज़ार तरीके हैं इस अत्याचार को रोकने के, लेकिन सरकार तो अव्यवस्था पर ही चलती है. सब कुछ ठीक कर देगी तो उसे कौन पूछेगा. अन्योंयार्जन भी तो बंद हो जायेगा.
कुलमिलाकर सबकुछ छोड़कर मामा से ही याचना की जाये कि वो कम से कम अपने प्रदेश में इन निरीह बहनों के लिए कुछ करें. इस तरह सडकों पर स्वयं दुर्घटनाओं का शिकार होती और दुर्घटनाओं का कारण बनती गौ बहनों की समुचित देखभाल के लिए या उद्धार के लिए सम्बंधित मंत्रालय को काम पर लगायें. मंत्रालय को कुछ फंड मिल जायेगा तो उक्त विभाग को भी अन्योंयार्जन के कुछ नए उपाय मिल जायेंगे.
बहरहाल ५ नवम्बर को हमने गोवर्धन पूजा उत्सव को गौ पूजन करके मनाया वहीँ फोर लेन पर एक गौ को दुर्घटनाग्रस्त होकर मरे हुए भी देखा. फोर लेन पर गौएँ कहाँ से आ जाती हैं ये मामा को भली भांति पता है. इसलिए उनकी चिंता भी मामा को करनी होगी, आज भाईदूज पर्व पर मामा तक गौमाता की ये अपील जरूर पहुंचना चाहिए.
लेखन : भारतभूषण आर गाँधी
(पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
