

अपने घर का चांद
चाँद..
ईद का
दूज का
चौदहवीं का या हो पूनो का..
और या हो करवा चौथ का…
लगता है बहुत मनोहर..।
देखो इसे धरातल पर खड़े खड़े,
अथवा ऊंची से ऊंची मंजिलों से—
रहता है यह हाथों की पकड़ से बहुत दूर…!!
सोचता हूँ…
चांद पर पहुँचने वाले
और अपनी प्रेयसी के लिए
चाँद-तारे तोड़ कर लाने की
शोखी बघारने वाले प्रेमी..
क्या स्पर्श कर पाए कभी
उसके कोमल मन को,
पूछ पाए उससे शीतलता का राज…,
कर पाए उससे रूबरू हो कर
मन की बातें…।
जान पाए उसके दूधिया चेहरे के दाग का रहस्य…।
संभव है उन्होंने
यह सब जान लिया हो..।
मगर संशय है
कि अगर बूझ लिए होते उन्होंने सारे प्रश्न
तो दुनिया को बताते जरूर।और यदि बता दिए होते
तो हम सब
अपने घर के चाँद की कभी
अनदेखी न करते….
बल्कि झंझावातों में भी
अपना संयम कायम रखने वाले
मुस्कुराते चांद को ताउम्र
अपने ह्रदयों में
ऊँचा स्थान देकर
पुरस्कृत करते….
उससे बातें करते..
उसकी धीरता को अपना कर
खुद भी चाँद होने का जतन करते…।
चरनजीत सिंह कुकरेजा
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

It’s true
बेहतरीन ,शानदार , अद्भुत ,प्रेरणादायक .
वास्तविक चांद को समर्पित एक अनमोल रचना .
बहुत अच्छी रचना है