काव्य भाषा : ग़ज़ल – रहबर गयावी उर्फ़ चोंच गयावी पटना

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ग़ज़ल

वो जो हर पेच ओ ख़म समझता है
मेरी बातों को कम समझता है

सिर्फ पानी पे फूंक देने को
कितना नादाँ है दम समझता है

जो मुसीबत से यार गुज़रा है
दूसरों का भी ग़म समझता है

कितना पागल है वो सिपाही भी
बन्द गोभी को बम समझता है

तुझको माचिस की क्या ज़रूरत है
अपनी बीवी को कम समझता है

मुझ से रिश्ता वो तोड़ कर रहबर
खुद को अब भी वो हम समझता है

रहबर गयावी उर्फ़ चोंच गयावी
पटना बिहार

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