काव्य भाषा : बासंतिया चाँद – डॉ ब्रजभूषण मिश्र भोपाल

197

बासंतिया चाँद

ढूँढ़ दो कोई वो
पीला बासंतिया चाँद
माँ जिसे बुलाती थी बचपन मे
दूध भात खिलाने को
मेरा मन बहलाने को

ढूँढ़ दो कोई मुझे
वो पीला बासंतिया चाँद
जिसकी एक झलक को
रुक गया मेरा यौवन
जो लौटा नहीं फिर गुजर कर

ढूंढ दो कोई मुझे
वो पीला बासंतिया चाँद
जो बिखेरता है चाँदनी आज भी
मन के आंगन में,पेड़ के पत्तो से छानकर

ढूंढ दो कोई मुझे
वो पीला बासंतिया चाँद
जो चिढ़ाता है मेरी उम्र को
मुझे बताना है उसे उसके
दूज और पूर्णिमा के रूप को

ढूंढों न कोई मेरा
वो पीला बासंतिया चाँद
जो मेरी रोशनी भी और
परछाई भी है और पता नहीं
वो मेरे पास है या ब्रज, हूँ मैं उसके पास

डॉ ब्रजभूषण मिश्र
भोपाल

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here