

लघुकथा शोध केंद्र भोपाल ‘परिन्दे -समूह’ की साप्ताहिक बुधवारीय गूगल गोष्ठी सम्पन्न
कथानक का अनावश्यक विस्तार लघुकथा को कमजोर करता है -रामगोपाल तिवारी ‘भावुक’
लघुकथा को अकादमिक और शोध के क्षेत्र में अभी लम्बा सफर तय करना शेष –अंतरा करबड़े
भोपाल ।
लघुकथा में कथानक का अनावश्यक विस्तार
उसे कमजोर बनाता है ,लघुकथा सृजन से पूर्व गम्भीर चिंतन मनन बहुत ज़रूरी है ।
यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार रामगोपाल भावुक (ग्वालियर) के जो लघुकथा के परिन्दे फेसबुक समूह द्वारा आयोजित साप्ताहिक लघुकथा गोष्ठी एवम विमर्श के अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अपनी बात रख रहे थे।
गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ लघुकथाकार और समीक्षक श्रीमती अंतरा करवड़े (इंदौर) ने कहा कि -‘लघुकथा को अकादमिक और शोध के क्षेत्र मरण अभी लम्बा सफर तय करना है,लघुकथा लेखक नवीन विषयों पर लघुकथा लिखें,रचनाकार की रचना ही उसकी पहचान होती है।
कार्यक्रम में स्वागत उदबोधन श्री गोकुल सोनी ने दिया ,एवम कार्यक्रम का संचालन श्री मुज़फ्फर इकबाल सिद्दीकी ने किया।
इस गोष्ठी में श्रीमती सारिका अनूप जोशी (महेश्वर) ने ‘वापिसी’ ,श्री सुधाकर मिश्र सरस् (महू) ने ‘देश भक्ति’ ,श्रीमती पूनम सिंह ने ‘रूम हीटर’ ,डॉ रत्ना मलिक (जमशेदपुर) ने ‘एक टुकड़ा आसमान ‘, डॉ सुरभि सिंह ने ‘मां ‘ डॉ रेणु सिंह (दिल्ली) ने ‘अपना आंगन’ लघुकथाओं का वाचन किया ।
इन लघुकथाओं पर सारगर्भित नीर-क्षीर समीक्षा चित्रा राघव राणा (कनाडा) ने प्रस्तुत की ।
कार्यक्रम के अंत में डॉ रंजना शर्मा ने सभी उपस्थित जनों का आभार प्रकट किया । इस आयोजन में देश-दुनिया के अनेक महत्वपूर्ण लघुकथा लेखक और पाठक उपस्थित थे ।
घनश्याम मैथिल’अमृत’
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
