काव्य भाषा : माँ को समर्पित मनहरण घनाक्षरी -किरण मिश्रा स्वयंसिद्धा नोयडा

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माँ को समर्पित मनहरण घनाक्षरी

1-
पाँव में बाजे पैजनी,
रत्नजडित” नथनी,
लाल लाल चुनरी से,
मैय्या को सजाइए।।

मस्तक पे चन्द्र साजे,
संग में शिव विराजे,
दिव्य स्वर्ण कान्ति आभा
प्रेम से निहारिए।

मनवांक्षित फल देती,
कष्ट सभी हर लेती,
विघ्नहर्ता मैय्या को,
प्रेम से पुकारिए ।

मन का हरे है द्वेष ,
तन का मिटता क्लेश ,
पुष्प,रोली,हल्दी,माँ को,
नेम से चढा़इए।।
2-?

माता मैं हूँ अल्प ज्ञानी
ध्याऊँ तुम्हें महारानी
प्रेम की अंखड जोती
अंतस जलाइए।

आनि बसो हृदय में
वास करो निलय में
सिंह की सवारी माता
द्वार में उतारिए।

नवदुर्गा,नवरात्रि
पर्व तेरा कालरात्रि
बारूँ नित धूप दीप
अमृत चखाइए।

होके मगन रीत में
कर जोडूँ प्रीति में
वंदन करूँ माँ अम्बे
नेह बरसाइये।

किरण मिश्रा स्वयंसिद्धा
नोयडा

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