

बच्चे जैसा सुनते हैं देखते हैं वैसे ही बनते हैं
गांधीजी ने हरिश्चंद्र नाटक देखा, जीवन पर्यन्त सत्य को जीवन में आत्मसात किया –डा सुधा गुप्ता
“बाल साहित्य और जीवन मूल्य”विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार
सम्पन्न
सागर।
भारतीय शिक्षण मंडल महाकौशल प्रांत, महिला प्रकल्प
क्षणिका मण्डल की संयोजक डॉ अनूपी समैया के सौजन्य से “बाल साहित्य और जीवन मूल्य”विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया। संचालन डॉ अनूपी समैया ने किया तथा स्वागत भाषण डॉ सरोज गुप्ता ने देते हुए बाल साहित्य की भारतेंदु युग से आज तक की परम्परा पर प्रकाश डाला। आपने कहा कि बाल साहित्य की इतनी प्रगति के बाद भी आज बच्चों का रुझान मोबाइल कामिक्स और अंग्रेजी कार्टून की ओर क्यों है? इसके लिए हमें बाल साहित्य की अस्मिता की तलाश करनी होगी। राष्ट्रीय वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर अर्चना पाण्डेय सागर ने कहा कि बच्चों की जिज्ञासा का शमन माता पिता को ही करना चाहिए। विकिपीडिया और गूगल हमें उतना नहीं समझ सकते जितनी समृद्ध हमारी परम्परायें हैं। विषय प्रवर्तन करते हुए डा सुधा गुप्ता ‘अमृता’कटनी ने कहा कि बाल-साहित्य पर संगोष्ठियां, शोधकार्य होने चाहिए।बाल साहित्य बच्चों के कोमलमन और भावों को परखकर रचा जाये जो रुचिकर ज्ञानवर्धक, मनोरंजक हो क्योंकि बच्चे जैसा सुनते हैं देखते हैं वैसे ही बनते हैं। गांधीजी ने हरिश्चंद्र नाटक देखा, जीवन पर्यन्त सत्य को जीवन में आत्मसात किया। बच्चों को कुछ नया देने की आवश्यकता है। मुख्य अतिथि डॉ प्रतिभा पाण्डेय ने कहा कि बच्चों को हंसते खेलते राष्ट्रीयता एवं देशभक्ति की शिक्षा दी जा सकती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन साल से लेकर छै साल के बच्चों को आंगनबाड़ी के माध्यम से मानव सेवा का पाठ पढ़ाया जाये।
ध्येय वाक्य-श्रीमती शोभा सराफ,सरस्वतीवन्दना-श्रीमती रेनू कठल,संगठन गीत-श्रीमती राजश्री दवे, सारस्वत वक्ता-
श्रीमती पूनम मेवाती ने बच्चों के सिर से कामिक्स के भूत न उतरने की बात कही।डॉ कृष्णा गुप्ता ने बाल साहित्य के विकास में पत्र पत्रिकाओं के महत्व को बताया। श्रीमती आराधना रावत ने बाल साहित्य के बढ़ते चरण पर विचार रखे।,डॉ प्रीति शर्मा ने अपने बेटे के संस्मरण, जिज्ञासा की प्रवृत्ति की बात कही।श्रीमती राज दवे ने बच्चों को संस्कार शील बनाने के लिए साहित्य के महत्व को बताया।श्रीमती शोभा सराफ ने कविता के माध्यम से बच्चों को नैतिक शिक्षा देने की बात कही। श्रीमती शैलवाला सुनरया ने अपने विचार रखे। भारतीय शिक्षण मंडल महाकौशल प्रांत के प्रांत सहमंत्री डॉ संजय पाठक,डा अरुण दुबे , डॉ ऊषा मिश्रा सहित महिला प्रकल्प की मातृशक्तियों ने सहभागिता कर कार्यक्रम को सफल बनाया।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
