लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की विशिष्ठ लघुकथा गोष्ठी सम्पन्न

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लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की विशिष्ठ लघुकथा गोष्ठी सम्पन्न

लघुकथा में अनुभूति की तीव्रता आवश्यक है-हरीश नवल

टूटन और विखंडन लघुकथा का सत्य नहीं- डॉ. पुरुषोत्तम दुबे

जिसे हम लघु कहते हैं असल में वह विराट होती है -लक्ष्मी शंकर वाजपेई

लघुकथा पढ़ने में पाठक को कहानी का अहसास हो -डॉ सूर्यकांत नागर

लघुकथा कहानी का संक्षिप्तिकरण नहीं है – सुभाष चंदर

भोपाल।
अपने प्रारंभिक दौर की अपेक्षा समकालीन लघुकथा में सपाट बयानी कम हुई है ,उसका शिल्प सुदृढ़ हुआ है,जहां भी विसंगति बिडम्बना पाखंड है लघुकथा वहां ढाल बनकर खड़ी है,लघुकथा में अनुभूति की इतनी तीव्रता हो कि पाठक आवक रह जाये,लघुकथा में परम्परा और प्रयोग की टकराहट चल रही है ,यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.हरीश नवल के जो लघुकथा शोध केंद्र भोपाल द्वारा आयोजित विशेष लघुकथा गोष्ठी में अध्यक्ष के रूप में बोल रहे थे | इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में सुपरिचित साहित्यकार और सेवानिवृत्त उपमहानिदेशक आकाशवाणी श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेई ने कहा कि -‘ जिसे हम लघु कहते हैं असल में वह विराट कथा होती है ,एक अच्छी लघुकथा का पाठक के ह्रदय से गहरा प्रभाव पड़ता है,इस अवसर पर उन्होंने ‘सोनू की बंदूक ‘ नामक अपनी लघुकथा का वाचन भी किया ।
इस महत्वपूर्ण विशिष्ट लघुकथा गोष्ठी में श्रीमती शोभा रस्तोगी ने ‘केनवास ‘ ,श्रीमती पवित्रा अग्रवाल ने ‘कितनी दूर ‘ , श्री अशोक जैन ने ‘मजदूर ‘ ,श्रीमती सुधा भार्गव ने ‘पालना’ ,श्री सतीश राठी ‘जिस्मों का देश ‘, श्री सुभाष नीरव ‘लाईव-लाईव ‘, डॉ शील कौशिक ‘बदलती प्रश्नवली ‘ डॉ बलराम अग्रवाल, ‘अनगिनत बच्चो की मां ‘, डॉ अशोक भाटिया ‘विलीन’ , डॉ कृष्णा अग्निहोत्री ‘अधिकार’ श्री भगीरथ परिहार ‘यक्ष- प्रश्न’ लघुकथाओं का पाठ किया |
विशिष्ठ लघुकथा गोष्ठी में वरिष्ठ लघुकथाकार श्री सूर्यकांत नागर ने कहा कि -‘ लघुकथा पढ़ने पर पाठक को कहानी पढ़ने का अहसास हो लघुकथा में प्रयोग सजावट के लिए न हों,लघुकथा घटना प्रधान न हो इसमें सांकेतिकता और प्रतीकात्मक ढंग से अपनी बात कहें | इस अवसर पर समीक्षक डॉ पुरुषोत्तम दुबे ने कहा कि टूटन और विखंडन लघुकथा का सत्य नहीं उन्होंने हर लघुकथा पर विस्तार से अपनी बात रखी | इस अवसर पर दूसरे समीक्षक वरिष्ठ व्यंग्यकार आलोचक श्री सुभाष चन्दर ने कहा कि -‘ लघुकथा कहानी का संक्षिप्तिकरण नहीं है ,न ही किसी घटना का विवरण,लघुकथा को संक्षिप्त भी होना है पूर्ण भी होना है,सम्प्रेषणीयता के साथ शिल्प भी मजबूत हो और सम्वेदना के चरम को भी स्पर्श करें ,इस प्रकार उन्होंने नीर-क्षीर सटीक विवेचना करते हुए इस लघुकथा गोष्ठी को अपने चरमोत्कर्ष तक पहुंचाया |
गोष्ठी का संचालन घनश्याम मैथिल’अमृत’ ने किया ,स्वागत उदबोधन लघुकथा शोध केंद्र की निदेशक श्रीमती कांता रॉय ने दिया | कार्यक्रम के अंत में आभार श्री गोकुल सोनी ने व्यक्त किया ,आयोजन को सफल बनाने में कार्यक्रम के संयोजक श्री मुज़फ्फर इकबाल सिद्दीकी व चित्रा राणा राघव की उल्लेखनीय भूमिका रही इस आयोजन में श्री रूप देवगुण ,राज बोहरे,रूपल उपाध्याय, संतोष सुपेकर,सत्यजीत रॉय,शेख शहज़ाद उस्मानी,राममूरत राही, पवन जैन,मालती बसन्त,अशोक धमेनिया,जया आर्य,डॉ कर्नल गिरजेश सक्सेना,डॉ ऋचा यादव, डॉ रंजना शर्मा ,मधुलिका सक्सेना ,सरिता बाघेला, शेफालिका सक्सेना सहित देश विदेश के अनेक लघुकथा प्रेमी उपस्थित थे |

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