काव्य भाषा : पितृ-पक्ष – डॉ नीरजा मेहता ‘कमलिनी’ दिल्ली

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पितृ-पक्ष

पितृ-पक्ष का है आगमन
उतरे हैं स्वर्ग से
हमारे पूर्वज
पाना है आशीष उनका
करना है तृप्त उनको…

द्वादश मासों में
आश्विन मास कृष्ण पक्ष का
विशेष है महत्व,
ये समर्पित है पितरों को
उनकी स्मृतियों को,
ये सम्मान है जाने वालों का
ये सौभाग्य है
उनका आशीष पाने वालों का…

आत्मा की तृप्ति हेतु
श्रद्धापूर्वक
चारों अंगों द्वारा कर समर्पित
पाना है आशीष उनका,
हवन द्वारा देवों की तृप्ति
पिंड दान द्वारा पितरों की संतुष्टि
जलांजलि द्वारा तर्पण
और उत्तम व्यक्ति को भोज अर्पण,
यही है हमारी संस्कृति
यही है हमारे संस्कार…

महत्व है पंचबली का
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर का,
पृथ्वी तत्व में गाय
जल तत्व में श्वान
अग्नि तत्व में चींटी
आकाश तत्व में देवता
वायु तत्व में काक,
इनको कर अर्पण
होते सनातन वैदिक संस्कार पूर्ण,
संतुष्ट होते पितर
प्रसन्न होते देव
संतुष्ट होते प्राणी
होती पुष्प वृष्टि
तृप्ति और खुशी से
भर जाती झोली…

वेद, स्मृति हो
पुराण, उपनिषद हो
या हो रामायण, महाभारत
सर्वत्र देहयुक्त द्वारा
निर्देह के पूजन की
ये विधि है, ये रीति है
और ये क्रम है जीवन का,
ये हिंदु धर्म की मान्यता है
जो स्वीकारता है
आत्मा के अस्तित्व को
आवागमन को
पुनर्जन्म को।

डॉ नीरजा मेहता ‘कमलिनी’
दिल्ली

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