लघुकथा : गृहलक्ष्मी की खीझ – चरनजीत सिंह कुकरेजा भोपाल

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गृहलक्ष्मी की खीझ

‘सोनू कितनी बार समझाया है तुम्हे मेरे टेबल पर अपना फालतू सामान मत रखा करो’ आनन्दों ने घर में कदम रखते ही सोनू को डाँट लगाई…
‘तुम्हें पता है न….मुझे टेबल पर बिखराव बिल्कुल पसंद नही है..ये देखो तुमने किताबों पर ही अपने गंदे कपड़े रखे हुए हैं…सरस्वती का वास होता है इसमें…’ आनन्दों गुस्से से सारे कपड़े सोनू की ओर फेंकते हुए अस्त-व्यस्त किताबें करीने से जमाने लगा। फिर अपने आपसे ही मुख़ातिब होते हुए बड़बड़ाने लगा..
‘ मैं भी किसे बता रहा हूँ, कभी कलम कागज़ से इसका वास्ता रहा हो तब न कद्र करे किताबों की…’ फिर उसकी ओर मुड़ते हुए तल्ख़ लहज़े में बोला
‘जाओ भई अब चाय-वाय पिलाओ या मेरा मुँह ही देखती रहोगी…बहुत काम निपटाने हैं मुझे..’
‘और मै तो जैसे फुर्सत में ही बैठी रहती हूँ न..’ आनन्दों के तेवर देख सोनू का पारा भी चढ़ने लगा
‘दिन भर घर के कामों में ही खटती रहती हूँ…पढ़ने लिखने का कभी वक्त भी दिया है तुमने…जागने से सोने तक क्या-क्या करती हूँ गिनाऊँ क्या तुम्हें…बात करते हो…’
उसने कपड़े समेटते हुए अपनी खीझ जारी रखी ‘सच कहूँ तो तुम सिर्फ नाम के ही आनन्दों हो..आनन्द तो बस बाहर ही लुटाते हो..घर में तो वही पुशतैनी चिड़चिड़ाहट..ऊब गई हूँ मैं भी तुम्हारे इस खड़ूस रवैये से..बिस्तर तक तो तुमसे समेटा नही जाता..बाथरूम से लेकर कमरे तक में सब कुछ फैला कर निकल जाते हो ऑफिस…। लौटते हो तो जूते कहीं..टिफिन कहीं..। कभी हाथ बंटाया है तुमने घर के कामों में…आज भूल से कुछ कपड़े टेबल पर रखे रह गए तो करने लगे हाय तौबा….। तुम्हारी सरस्वती के सामने मेरी कोई कीमत नही है क्या..?’ कमरे में फैले निःशब्द सन्नाटे में सोनू का प्रश्न उत्तर की प्रतीक्षा में आज भी *हर घर में* अनुत्तरित है….।

चरनजीत सिंह कुकरेजा
भोपाल

4 COMMENTS

  1. Umda aur behtreen laghukatha.
    Paariwarik gadi apsi sahyog ,samarpan aur samanvay se hi achchhi tarah chalti hai . Yahi sandesh deti ek sundar rachna.
    ???

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