काव्य भाषा : हिन्दी माँ चन्दरेश के, भाव भरे संवेद -चन्द्रकांता सिवाल “चंद्रेश” , सतनगर ,दिल्ली

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हिन्दी माँ चन्दरेश के, भाव भरे संवेद

हिन्दी भाषा प्रेम की,
सबको प्रेम सिखाय।
सब भावों के राग की,
ये ही है पर्याय।।

शब्दों का निज कोष है,
वाणी का मधुगान।
हिन्दी बोलो प्रेम से,
हिन्दी बड़ी महान।।

सखा भाव सी मैत्री,
रखती सबके साथ।
बड़े प्रेम से थामती,
सब भाषा का हाथ।

समझे सबकी बात को,
करती सबका मान।
हिन्दी भाषा प्रेम की,
देती है पहचान।।

शब्दों में रस घोलती,
वाणी मधुर मिठास।
भाषा ओ संस्कृति का,
होता यहाँ विकास।।

निजभाषा अनमोल है,
इसमें प्रेम दुलार।
बिन निजभाषा ज्ञान ये,
जीवन लगे न पार।

रोटी खाते हिन्दी की,
करते पर गुणगान।
प्रेम विदेशी से करे,
घटता माँ का मान।।

बात करें’ सब हिन्दी में,
करो सभी संवाद।
हिन्दी भाषा में सभी,
होते हैं अनुवाद।।

शब्द शब्द का सार है,
वर्ण – वर्ण का भेद।
हिन्दी माँ चन्दरेश के,
भाव भरे संवेद।।

चन्द्रकांता सिवाल “चंद्रेश”
करोल बाग सतनगर (दिल्ली)

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