काव्य भाषा – हिन्दी दिवस (व्यंग्य कविता) -डॉ ब्रजभूषण मिश्र भोपाल

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हिन्दी दिवस (व्यंग्य कविता)

आओ हिन्दी दिवस मनाएँ
लुप्त सी हो रही,ढूंढें संभावनाएँ

समारोह तुम करो,हम करें
फिर,सब इसे भूल जाएँ

अंग्रजी,उर्दू शब्दों में है आकर्षण
प्रयोग कर उन्हें ही,दें हिन्दी की शुभकामनाएं

सजा दें मंच,मेहमान ढूँढ लाएँ
भाषण में हिन्दी का प्रयोग ही भूल जायें

सरकार करे हिन्दी उन्नयन, कर प्रतियोगिताएं
हम भी हों हाजिर,अंग्रजी में दस्तखत कर आयें

पत्रकार रंगें, अखबार हिन्दी में,आज
फिर साल भर,हिन्दी भूल जायें

जलाते आये दीप,हिन्दी प्रकाश दे
रोशनी फिर हिंदी की,ढूंढते रह जाएं

आम भाषा,हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनायें
इसी तरह हर वर्ष,दिन हिंदी का मनाएँ

बजट कभी न कम हो,भले प्रयोग हो कम
हिन्दी की दशा,दुर्दशा पर चिन्ता जरूर जताएँ

ब्रज,न हो निराश,रख विश्वास और आस तूँ
शनैः शनैः,ही सही,मिलेगी सफलताएँ

डॉ ब्रजभूषण मिश्र
भोपाल

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