

साहित्य संगम संस्थान की बहुप्रतीक्षित पुस्तक ‘महाकाव्यमेध’ हुई प्रकाशित.
आ. रामावतार बिंजराजका निश्छल जी की प्रेरणा से 101 रचनाकारों की रचनाओं का संकलन बहुप्रतीक्षित पुस्तक ‘महाकाव्य मेध’ अंततः प्रकाशित हुई। इसका विमोचन योजनानुसार आगरा में होना तय था मगर महामारी के चलते यह संभव न हो सका। अब यह पुस्तक रचनाकारों को उनके दिये पते पर ही भेजी जा रही है। इसी के साथ सभी आशंकाओं और प्रश्नों पर भी विराम लग गया है। साहित्य संगम संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष आ. राजवीर सिंह मंत्र जी के शिवशंकल्प से यह पुस्तक संपादित एवं प्रकाशित हो सकी है। निस्वार्थ सेवा और साहित्य के प्रति समर्पित भाव से इस पुस्तक का संपादन कार्य आ.राजेश तिवारी रामू काका ने किया है। आ.मिथलेश सिंह मिलिंद जी का लगातर प्रोत्साहन एवम् आ. कुमार रोहित रोज जी की प्रेरणा ने पुस्तक को अपने मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की है।
पुस्तक का अलंकरण आला दर्जे का है। जिसे देखते ही पाठक का मन इसे स्पर्श करने को करता है। पुस्तक में विविध छंदों की सरिता, अलंकारों की भीनी भीनी सुगंध, भाषा शैली की फुहार ने पूरी पुस्तक को अविस्मरणीय बना दिया। मुख्य पृष्ठ को देखते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है और आगे के पृष्ठों की उत्सुकता बढ़ जाती है। कुल मिलाकर इस महाकाव्य मेध का हर पृष्ठ अपने में अनूठापन लिए हुए है। क्योंकि नयनाभिराम अलंकरण पर उच्च कोटि के रचनाकारों की रचनाओं उसमे अंकित है। जिन्हें पढ़कर हिंदी साहित्य की ऊंचाइयों का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह पुस्तक साहित्य संगम संस्थान के ई पुस्तकालय में भी सुरक्षित है। इलैक्ट्रानिक हिंदी साहित्य के कोष में यह पुस्तक यकींनन अमूल्य धरोहर बनकर संरक्षित रहेगी। सम्मलित सभी रचनाएं उत्कृष्ट हैं जो रचनाकारों का सहज मापन भी करती हैं। जिसे पुस्तक प्राप्त हो रही है वह रचनाकार इसे पाकर हर्षित और गर्वित है। शेष रचनाकार अपनी बारी का इंतजार बड़ी बेसब्री से कर रहे हैं।
साहित्य संगम संस्थान की ‘महाकाव्य मेध’ पुस्तक को समूचे हिंद में फैलाने के लिए प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया का भरपूर सहयोग मिल रहा है जो वंदनीय है। यूं भी अच्छे कार्यों का विस्तार आवश्यक है। आइये हम सब महाकाव्यमेध को पढें और पढायें हिंद का मान बढायें। जय हिंद जय हिंदी।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
