काव्य भाषा : तुम बिन कौन उबारे – सुषमा दीक्षित शुक्ला लखनऊ

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तुम बिन कौन उबारे

गोवर्धन धारी हे! कान्हा,बन जाओ रखवारे ।
हे! कृष्णा हे! मोहन मेरे तुम बिन कौन उबारे ।

हर कोई है व्यथित यहाँ तो अपने दुःख से हारे ।
थोड़ी सी मुस्कान कन्हैया जग को दे दो प्यारे ।

तुम बिन मेरे कान्हा अब ये नइया कौन उबारे ।
तड़प उठी मानवता अब तो केवल तुम्हे पुकारे ।

हे!यदुनन्दन दया करो अब बिलख रहे हैं सारे ।
तुमने तो पहले भी कितने अनगिन असुर सँहारे।

दुष्ट कंस पूतना वकासुर एक एक कर मारे।
अब दुःखों का नाम मिटा दो राधा जी के प्यारे ।

हर कोई है व्यथित यहाँ तो अपने दुःख से हारे ।
हे! कान्हा हे !मोहन मेरे तुम बिन कौन उबारे ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ

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