
नागरिक पत्रकारिता :
महज समाचार नही है,माँ-बेटी की ये आत्महत्या !
ये महज एक समाचार नहीं हैं कि इटारसी की एक महिला ने अपनी १ वर्ष की छोटी सी मासूम बच्ची के साथ पानी की टंकी में डूब कर आत्महत्या कर ली ये दु:खद वाक्या भर नहीं बल्कि समाज की अपंग मानसिक अवस्था और लचर व्यवस्था का परिचायक भी हैं | जिसे बेहतर करने का दायित्व हम सभी के कंधे पर हैं | देखना ये होगा की कौन और कितने लोग हैं जो सामाजिक सरोकार के दायित्वों को अपने मजबूत कंधों पर जिम्मेदारी की तरहा संभालते हैं या “मुझे क्या करना” मानकर उन्हें अपने दुर्बल कंधो से झटक देते हैं | आँकडे़ देखिए पूरे देश में नौ हजार से कुछ ही ज्यादा मनोचिकित्सक हैं यानि कि हर एक लाख मरीज पर महज ऐसा एक डाक्टर ही उपलब्ध है | आँकडो़ की विडम्बना देखिए सवा लाख की जनसंख्या वाले शहर हमारे शहर में एक भी मनोचिकित्सक उपलब्ध नहीं जैसे की इटारसी देश में ही नहीं | जबकि शहर में कोरोना के कारण अवसाद से घिरे लोगों की तादाद लगतार बढ़ रही हैं | नागरिकों के मानसिक स्वास्थ का ध्यान रखने इस पहलू पर मैं पहले भी लिख चुका हूँ | मानसिक अवसाद से पीड़ित नागरिक को सहारे की जरूरत होती है | उन्हें परामर्श सेवा जैसी किसी ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता हैं जहाँ उससे सीधे बातचीत करने वाला हो उसका मनोबल बढाने वाला हो उसकी मनो अवस्था भाप कर दवा देने रास्ता दिखाने वाला हो | परिवार वालों का भी दायित्व हैं कि अवसाद से घिरे नजदीकी जन पर निगाह रखे ! उससे बातचीत करें ! उसका मनोबल बढाऐ ! इसके साथ ही समाज में लोगों को अपने आस-पास ऐसे लोगों पर निगाह रखने की जरुरत होती हैं जिनमें आत्महत्या या अवसाद का कोई संकेत मिलता हो | ताकि उसे उस अवसाद से बाहर निकाला जा सके | जानता हूँ ये आसान कार्य नहीं हैं लेकिन यदि पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों को मजबूत किया जाऐ तो ऐसा किया जा सकता हैं | याद रखिऐ पिछले कुछ महीनों से मानसिक अवसाद (Depression) के कारण आत्महत्या या आत्महत्या की कोशिश (Suicide and Suicide attempts) करने वालों की देश में बाढ़ सी आने के समाचार मिल रहे हैं हाल भी में ऐसी कुछ दुःखद घटनाऐ इटारसी में भी बढी़ हैं | ये एक अलार्म की तरहा हैं जिसे सुनकर हम सभी इटारसीवासीयों को सचेत होने की आवश्यकता हैं दुनिया में कोरोना के बढ़ते खतरे के साथ ही डिप्रेशन और आत्महत्याओं के मामलों में भी तेजी से इजाफा होता दिख रहा है | इसके तीन कारण हैं पहला-बेरोजगारी और धंधा चौपट होने से पैदा हुई आर्थिक तंगी, दूसरा-कोरोना होने का डर और तीसरा- किसी अपने का खोने के साथ ही समाज से दूरी बढ़ने के कारण अकेलापन महसूस करना | इससे राहत के लिए कुछ जरूरी कदम उठाऐ जाने बेहद जरूरी हैं पहला शहर में परामर्श केंद्र सहित एक बेहद काबिल मनोचिकित्सक की पूर्ति, बंद पडे़ उद्यानों को खोलना, बंद पडे़ थियटरों अॉडोटोरियम को 50% क्षमता के साथ खोलकर कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुऐ मोटिवेशनल स्पीकरों के कार्यक्रमों का आयोजन करना | कुल मिलाकर अवसाद से घिरे शहरी को बाहर निकालने के लिए सरकार, समाज, संगठन सबको मिलकर काम करने की आवश्यकता हैं | आत्महत्या करना या उसका ख्याल आना भी एक संक्रमित रोग से कम नहीं ! परिवार में एक के सुसाइड करने पर अन्य को भी अवसाद की स्थिति से निकलने का वही रास्ता नजर आता है | इस संक्रमण से बचने का तरीका सामाजिक दूरी मिटाना, मनोबल बढा़ना, स्नेह प्यार और दुलार के साथ अवसाद से घिरे व्यक्ति की सही मनोचिकित्सा और दवा हैं | हमें इस ओर ध्यान देना होगा |
– अजय रणजीत सिंह राजपूत
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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
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