
गुज़ारिश
जीवन बिता देते हैं लोग
महज एक आशियाना बनाने में
लेकिन, तुम हो कि चूकते नहीं बस्तियां उजाड़ने में.
विचारों की इन लम्बी कतारों में
ज्ञान ही अस्त्र है ,
ग्रन्थ ही शस्त्र है, पर
अश्कों से भीगे इन नयनोँ की
महज इतनी सी कहानी है –
जो सूख गया वह मोती है ,
जो बह गया वो नितांत पानी है.
ज्ञान कहता है कि
सांसारिक जीवन से ऊपर उठ जाओ
मनुष्यता कहती है –दुःख में किसी की ढाल बन जाओ
न बना सको किसी को,
तो कम से कम बिगाड़ो न किसी को
इतनी सी गुज़ारिश है मेरी बस सभी से,
फूल बन बिखर जाओ पथ में सभी के,
दिया बन रौशनी बन जाओ सभी के
इतनी सी गुज़ारिश है मेरी बस सभी से.
– अमिता राज
बरेली 243122 (उ.प्र.)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
बहुत सुंदर कविता। बधाई अमिता।
संपादक श्री देवेन्द्र सोनी जी को बहुत बहुत धन्यवाद।
संपादक महोदय एवम पूज्यनीय सत्येंद्र भाई का हृदय से आभार
too good to read madam keep it up
संपादक महोदय एवम पूजनीय सत्येंद्र भाई का हृदय से आभार
बहुत सुंदर कविता