
प्रकृति के उपहार
प्रकृति के उपहार निराले
लगते कितने प्यारे प्यारे
प्रकृति ने ही हमको पाल
प्रकृति के हम रखवाले
गिरी शृंखला फैली चहु ओर
नदियाँ कल कल करे शोर
हरे भरे कानन को न छोड़
आओ चले प्रकृति की ओर
देखो चाहे विश्व का छोर
फैली सुंदरता हर एक कोर
कश्मीर से कन्याकुमारी की ओर
हर तरफ प्रकृति का ही शोर
प्रकृति का गुणगान करो
आओ मिलकर इसे प्यार करो
बढ़ाओ कदम बिना कोई शोर
आओ चले प्रकृति की ओर
श्वेता शर्मा
रायपुर छत्तीसगढ़
स्वरचित

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बहुत सुंदर रचना। बहुत बहुत बधाई। श्वेता जी रायपुर में आप कहां रहती हैं। रायपुर में कबीर पंथ के महंत प्रकाश मुनि जी रहते हैं। मुझे उनका पता चाहिए। मेरा नं 9922993647 है।