
सत्य का दर्पण
मिथ्या के दौर में,आडम्बर के इस ठौर में।
मीठ सी बोली लगे,हर चेहरा नकली सजे।
आँखों पर परदा लगे,पाने को सब ओहदे।
धरा में कोई कहता,सत्य आज बताता हूँ।
दर्पण हूँ साहब,लोगो के दाग दिखाता हूँ।।
निज ही निज को करते,रोज यहाँ हलाल।
अपने ही घर लूटने को,लगे हुए हैं दलाल।
खोद रहे सब खन्दक ,चलने को भूचाल।
शांत हो गए है सब,पूछने वाले सवाल।
ऐसे में कोई कहता,नकाब मैं उठाता हूँ।
दर्पण हूँ साहब! लोगों के दाग दिखाता हूँ।।
दिख रहे सब शेर सा,पहन लोमड़ी खाल।
कोयली बनकर गा रहे,कौआ मीठी ताल।
भक्षक चोरी कर रहे,बन कर नेक द्वारपाल।
सेंध लगाकर देश को,बना दिये हैं कंगाल।
ऐसे में कोई कहता,मैं एक संवाददाता हूँ।
दर्पण हूँ साहब! लोगो के दाग दिखाता हूँ।
झूठ-फरेब बेईमानी के,लगे हुए है बाज़ार।
महान दिखते लोगो के,लघु चरित्र आकार।
कोमल दिखते पेड़ो के,भरे अंदर रेशेदार।
हर बड़े अपराधों के,फैले हुए ठेकेदार।
ऐसे में कोई कहता,मैं तो एक व्याख्याता हूँ।
दर्पण हूँ साहब! सत्य का पाठ पढ़ाता हूँ।
भयावह-कुरूप चेहरे पर,लगे हुए है साज़।
हर चारु स्वरूप के,अलग-अलग मिजाज।
निज अस्तित्व को भूल,बदलते रहते अंदाज़।
हर मुखौटे चेहरों में,झूठी होती अल्फाज।
ऐसे में कोई कहता,कभी नही मदमाता हूँ।
दर्पण हूँ साहब! लोगो के दाग दिखाता हूँ।।
चन्द्रकान्त खुंटे “क्रांति”
जांजगीर-चाम्पा (छत्तीसगढ़)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
सादर आभार आदरणीय🙏🙏