
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 12
“ग़ज़ल”
गई बात छोड़ो ज़रा ।
नये पृष्ठ खोलो ज़रा ।
पढ़ो ज्ञान पा लो सही,
सही बात बोलो ज़रा ।
मिलेगी तभी मंजिलें
समय साथ डोलो ज़रा ।
कहे जो ज़माना बुरा,
खुदी को टटोलो ज़रा ।
मिला जो किया कर्म है,
उसे आज ढोलो ज़रा ।
किसी को सुनाना नहीं,
छुपा दर्द रो लो ज़रा ।
चुनावी हवा है यहाँ
अभी होंठ सी लो ज़रा ।
चलो नेकियों पर सुनो
दुखी संग जी लो ज़रा ।
बदी से न डरना कभी,
सदा सत्य बोलो ज़रा ।
प्रमिला श्री’तिवारी’
धनबाद
सादर आभार आदरणीय देवेंद्र जी
मेरी रचना को स्थान देने के लिए।
बहुत सुंदर कविता है। बधाई मैडम।