
बिन पानी सब सुना
सावधान! ओ मनु पुत्र,
अनुशासन मत भंग करो ।
मिले हैं, जो उपहार तुम्हे,
उन्हे न यूँ बदरंग करो ।
याद करो उस सृष्टा को,
जिसने सब कुछ तुम्हे दिया ।
सर्व सुलभ है जलवायु,
प्रकृति का सौंदर्य दिया ।
पर मानव जीवन पाकर भी,
तनिक न इसका मान किया ।
स्वार्थ परायण हो कर तूने,
सुख सपना ही बर्बाद किया ।
धरती के ऊपर है पानी ,
धरती के नीचे भी पानी
तीजा है बारिश का पानी,
फिर भी रोते पानी~पानी ।
जल की विपुल राशि को,
मानव तूने बर्बाद किया ।
संसाधन का कर कर दोहन,
प्रकृति से खिलवाड़ किया ।
जलता सूरज, तपती धरती,
हाल बुरा है जीवन का ।
तिस पर भी है, संकट भारी,
बूंद~बूंद जल पीवन का ।
पथराई दरिया की दशा देख,
दिल भी मेरा पथराया है ।
दूर दूर तक गई नजर,
पर पानी कहीं न पाया है ।
सूखे कण्ठ होंठ हैं सूखे,
इंतजार है पानी का ।
भुगत रहे परिणाम स्वयं,
इन्सान तेरी मनमानी का,
पानी है अनमोल सभी को,
इसकी रक्षा करनी होगी ।
गाँव गाँव से शहरों तक,
अब अलख जगानी ही होगी ।
– इंजी. शिवेंद्र शर्मा,
इंदौर

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