
बेंत बबूल की
याद है दोनों हथेलियों पर
सटा सट बेंत की मार
सखुआ की बेंत
टूट जाती थी
खजूर की बेंत से लाल निशान
पड़ जाते थे
कुछ शिक्षिकाएं बेंत लेकर ही चलती थीं
हम बच्चे थे ही इतने शैतान !!
सोचकर कभी गुस्सा नहीं आता
हँसी आती है
एक के किए की सजा सबको
कोई राई दुहाई नहीं
बबूल में कांटे होते हैं
बबूल की बेंत नहीं होती थी
होती तो ..?
कोरोना नाम की यह व्याधि
बबूल की बेंत लेकर आई
सटा सट चलाती है
पकड़ पकड़ कर ठूंस देती है
अपने अपने दरबों में
नाक मुंह सब बंधवा दिया
चूं भी न करे कोई
नहीं डरे हमलोग
फिर कांटों से बिंध बिंधकर
प्राण त्यागने लगे लोग
इस तरह कि
सदियों तक रुह कांपेगी
सिर्फ याद करके भी
मुंडेर पर बैठी मैना
अपनी सहेली से बतियाती है
कांय कुचूर कांय कुचूर
देखो !हमलोग आजाद हैं
और कैद में
ये मानव ….
इन्हें समझाने को
क्यों चाहिए बेंत बबूल की !!
शशि बाला
हजारीबाग

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।