
हरियाली
हरियाली धरती की गहना
नदी तालाब है इसकी बहना
है स्वार्थी हम मानव
प्रकृति रौंदा बन दानव
शायद हमसे अच्छे पशु-पछी
प्रकृति से उनकी दोस्ती
हम से अच्छी
जंगल में पशु-पछी करते मंगल
नदी बहती कर कल-कल
किया हमने प्रकृति का नाश
नाम दिया इसका विकास
काटे पेड़ और सुखाई धरा
खेत जलाया ,काटा जंगल हरा-भरा
हरी धरा को मरुथल बनाया
पर्यावरण दिवस मना कर्तव्य जताया
पेड़ पौधों और जंगल की
अंधाधुन कटाई
फिर क्यो हरियाली की उम्मीद लगाई
काश यदि ऐसा न होता
पशु मानव न बिन पानी मरता
गर्मी से धरती नहीं तपता
नदी-तालाब मे पानी से भरा रहता
धरा रहती हरी भरी
चहुं ओर हरियाली होती
यदि नहीं अब है रोना
आगे की पीढ़ी को यदि कुछ है देना
तो पेड़-पौधे लगाना
पेड़ – पौधे बचाना
हरियाली धरती का गहना
धरती को पुनः है पहनना
हरियाली फिर है लाना
धरा को फिर हरा भरा बनाना॥
राजीव रंजन शुक्ल
पटना (बिहार)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
बहुत अच्छी कविता।प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी है जिसका निर्वहन हम सब को मिल कर करना है।
शुभकामनाएं