
अभी छोटी ही रह
आज की सुबह बड़ी सुहानी थी
छोटी छोटी बूँदें
आसमान की गागर से
छलक छलक गिर रही थीं
बादलों की आपाधापी
बता रही थी
अब गागर पूरा उलट देगा आसमान
अहा!प्यासी धरती
तृप्त हो जाएगी
बालकनी में कुर्सी रखी थी
बैठकर देख रहा था
इच्छा होती थी
गरमा गरम
चाय की प्याली आ जाए सामने
ठीक तभी !
ठीक तभी सामने
चाय की प्याली रखकर
गले में बाँहें डाल झूल गयी बिटिया
अरे!मेरी नन्ही सी गुड़िया!
कब तू बड़ी हो गयी
अभी कल तक
खिलौनों वाले कप में ही
चाय कॉफी पिलाती रहती थी
आज …..
शब्द घुमड़ कर रह गये गले में
उसकी हथेलियों को चूम कर कहा
खुश रह मेरी गुड़िया !
सब सुख मिले तुझको !!
पर अभी बड़ी मत हो
छोटी ही रह
मैं तुझे छुटकी कहकर बुलाऊँ
और घोड़ा बनकर पीठ पर बिठाऊँ….
शशि बाला
हजारीबाग

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