
हाइकु – गर्मी
प्रचण्ड गर्मी
है उदंड ये गर्मी
बड़ा सताती
प्यास बढ़ाती
ठंडक ढूंढ़वाती
तपती धरा,
धरा आकाश
पंखा होता है पास
गर्म सांस,
कड़कती है
जलती जलाती है
गुस्सा दिखाती,
सुखते पेड़
ताल नदियाँ कुएं
पतझड़ सा,
गर्मी का रूप
चिलचिलाती धुप
बड़ा कुरूप!
स्वरचित. मौलिक.
रीना वर्मा प्रेरणा
हजारीबाग

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