
नागपाश
निशब्द है लेखनी,
अवाक है रजनी।
स्तब्ध है सृष्टि,
घनघोर है वृष्टि।
चकित हैं प्रकृति,
टीस भरी विकृति।
अभेद है समस्या,
बंद है दिनचर्या।
दिग्भ्रमित है चरक,
जिंदगी है नरक।
प्रश्न है जटिल,
व्यवस्थाएं है कुटिल।
महामारी है नागपाश,
दिखती नहीं है आश।
आपस में रखें दूरी,
आज यही है जरुरी।
संगम त्रिपाठी
बिरसिंहपुर

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