
तुम इंतजार ज़रूर करना
तुम इंतजार ज़रूर करना,उगते सूरज की आस तुम ज़रूर करना।।
निराश हो? बेचैन हो?या बेख्वाब हो?, कस्मकस घड़ी के गुज़र जाने की तलाश में ज़रूर रहना।
घिरे अंधेरे के कोहरे से उस चांद को देखने की हलक तुम ज़रूर रखना,
तुम इंतजार ज़रूर करना उगते सूरज की आस तुम ज़रूर करना।
उस भरे पतझड़ के मौसम में भी वसंत की आस तुम ज़रूर रखना,
आज गिरे पत्तों को देखकर ही सही, पेड़ पर खिले फूलों की चाह ज़रूर रखना।
तुम इंतजार ज़रूर करना उगते सूरज की आस तुम ज़रूर करना।
चाहे छिप जाए वह सूरज किसी कोने में पर थमकर एक दफा और सोचना,
इंतजार में आस और आस में इंतजार ज़रूर करना।
तुम इंतजार ज़रूर करना उगते सूरज की आस तुम ज़रूर करना।।।
दीपिका चौहान
जशपुर

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बहुत सुंदर रचना।