
“नारी और पाजेब “
नन्हें पैरों की मासूम सी पाजेब
जब युवावस्था में प्रवेश करती है
तब उसमें पिरो दिए जाते हैं
नारी जीवन के ठोस बिंदुओं को दर्शाने के लिये
छोटे छोटे घुंघरू….!
ताकि वह इनकी झंकार सुन कर
अपने डगमगाते कदमों पर नियंत्रण रख सके।
यह बात अलग है कि,
जीवन की कटु सच्चाइयों से खींचातानी में
“पाजेब” टूट जाती है….
और बिखरे हुए घुंघरुओं को समेटने में
नारी का सम्पूर्ण जीवन ही व्यतीत हो जाता है।
और जब वह
अपने जीवन के बिखरे हुए घुंघरुओं को पंक्तिबद्ध पिरोकर
पुनः पाजेब का रूप देती है
तो उसके उमंग भरे चेहरे की झुर्रियां
उसे यह पाजेब पहनने से रोक लेती हैं।
और वह…..
अपने हाथों से सहेजी हुई
इस अनमोल पाजेब को
अपनी कोख से जन्मी
लाडली के पैरों में पहना देती है..
एक बार फिर से बिखरने के लिये……..!!!
चरनजीत सिंह कुकरेजा,
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
बेहतरीन रचना।
👏👏👏
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सादर
जया आर्य
भोपाल
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