
।मुक्तक छंद।
।।1।।
कलह घर -घर मे होती है,
मगर अपनी खबर मत दो।
विषय है जगहंसाई का,
थोड़ा लड़ लो,मगर हँस दो।
समरभूमि में मुश्किल है,
बीवी से जीत कर आना।
पड़े एक गाल पर चाटा,
तो दूसरा भी फटाफट दो।।
।।2।।
वो तेवर देख बीवी का ,
जो अक्सर चुप रहा करते।
मार चौकी व बेलन के,
सदा वो दूर से बचते।
जो अपनी गलतियों को मानकर ,
प्रणाम करते हैं,
धुनाई घर मे होती है,
लोकनिंदा से बच जाते।।
।।3।।
जो बीवी बाज न आये ,
तो ज्यादा सर खपाना ना।
गलत जो दूसरों ने की,
उसे तुम भी दुहराना ना।
करो कुछ कम ऐसा की ,
सदा ही रूठ जाए वो।
मजा लो फिर अकेले का ,
उसे जाकर मनाना, ना।।
–अनिल साहू,प्रतापपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
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