
आओ अपने घर चले
शोर शराबा, यंत्र तंत्र से, दूर चले कही दूर चले,
हरियाली की गोद चलें, पगडंडी की ओर चलें,,,,
आओ अपने घर चले…।।
वो माटी का चूल्हा, वो मिट्टी की खुशबू,
छोड छाड़ ये शहर चले,
आओ अपने घर चले….।।
वो रोटी जिसके हिस्से चार, इंसानियत के किस्से हजार,
उस प्रेम नगर की ओर चले,
आओ अपने घर चले….।।
संस्कार यही हर घर अपनाए, भूखा द्वारे से न जाए,
उस प्रेम प्रीत की डगर चले,
आओ अपने घर चले ।
आजाद परिंदे, दाना पानी, मानवता की अनमोल निशानी,
इस भीड भाड़ से दूर चले,
आओ अपने घर चले,,,,,
आओ अपने घर चले,,,, ।।
@ मनोज कान्हे ‘शिवांश’
इंदौर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।