
0 नज़्म
जब तुम
बिंदिया सजाती हो तो
लगता है कि
सारी कायनात का
इश्क सिमट आया है
तुम्हारे जबीं पर
जब तुम
मेरे नाम को
उकेरती हो हिना से
तब लगता है कि
बसंती एहसास घुल गया है
तुम्हारी हथेली पर
जब तुम
सुर्ख गुलाबों की रंगत से
संवारती हो अधरों को
तो लगता है
जैसे सांझ की लालिमा
ठहर गई है
तुम्हारे लबों पर
जब तुम
सजदा करती हो तो
यूं लगता है कि
कोई नूर उतर आया है
हमारे दिल की जमीं पर ।
– अदिति टंडन
आगरा .
– जबीं _ माथा

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।