
क्या तुम इंसान हो
देते है हम संदेश सबको
सदा ही सत्य अहिंसा का।
पर खुद कितना इस पर
हम लोग चलते है।
साथ ही कितने स्वर्थी है
हम इस कलयुग में।
जो अपनी ही बाते
कहते रहते है इस युग में।
और कहते है खुद जियो
औरो को भी जीने दो।।
पर कितना फर्क है इसे
अपने जीवन में अपनाना।
और गर्व से हम कहते है
की हम अहिंसा के पूजारी है।
मन वचन काया से हम
सभी को माफ करते है।
परंतु कह नी और करनी में
बहुत ही ज्यादा अंतर है।।
करे नित्य पूजा पाठ मंदिर
और चैतयालयाओं आदि में।
करे स्वाध्याय नित्य दिन
माँ जिनवाणी का।
नियम धर्म का भी हम
करे नित्य दिन पलान।
पर खुद के क्रोध पर
नहीं रख पाते नियंत्रण।।
परंतु कहने को इंसान है
नहीं करते हिंसा किसी के संग।
दिखाने को कितना कुछ
बड़े-2 मंचों से घोषणाएं करते।
अमल खुद कितन %
इंसान आज के करते।
मानव रूप मे जन्म लेने से
कोई मानव नहीं होता।
उसका निश्चय और व्यवहार
मानव जैसा होना जरूरी है।।
संजय जैन
मुंबई

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
संजय जी आपकी रचना बहुत अच्छी है दिल को छू गई।