
भ्रम
उसे वंचित किया गया
वो रोने लगी
उसे त्यागी कहा
वो खुश हुई
उससे छीना गया
वो रोने लगी
उसे दानी कहा
वो खुश हुई
उसे अपमानित किया
वो रोने लगी
उसे सहनशील कहा
वो खुश हुई
उसे कुंठित किया
वो रोने लगी
उसे संस्कारी कहा
वो खुश हुई
उसके सपने तोड़े
वो रोने लगी
उसे उपहार दिए
वो खुश हुई
उसको बेड़ियां पहनाईं
वो रोने लगी
घर-इज़्ज़त का ठेका दिया
वो खुश हुई
वो कैद होती गई एक भ्रमजाल में
और भूल गई खुद को
फिर उससे कहा गया
तू है ही क्या चीज़?
वो सोचने लगी…
वो समझने लगी…
धीरे धीरे अपने भ्रम को
अच्छी तरह जान गई
उसको जड़हीन बनाने की
साजिश को पहचान गई
उसने अपने पंख खोले
फड़फड़ाई, गिरी, संभली, उठी
और सीख गई फिर से उड़ना
अब सब कहते हैं
वो तो है ही नायाब
किसी से कम थोड़े ही है..।
दीप्ति सक्सेना
सहायक अध्यापक
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कटसारी
बरेली।
निवासी- बदायूँ।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
रचना प्रकाशन हेतु धन्यवाद
Great work😊
महिला सशक्तिकरण की रचना के क्रम में एक अच्छा प्रयास।