
समानता का अधिकार:समय की मांग
हम आज नारी सशक्तिकरण की बात करते हैं ।किंतु नारी पुरातन काल से ही सशक्त रही है और रहेगी।यदि हम इतिहास उठाकर देखें, तो राज्य संचालन ,राजनीति,युद्ध कौशल, शास्त्रार्थ आदि कार्यों में नारी ने अपना नाम कमाया है।
हर दौर में नारी सशक्त रही है। उसे अधिकार प्राप्त रहे हैं चाहे वो राजनीति हो ,वित्तीय हो या न्यायिक।नारी का समाज ,परिवार, व शासन की परिचालन में सदैव से ही बराबर का हिस्सा रहा है। यदि परिवार समाज का शासन में पुरुष का स्वामित्व रहा भी है तो उसके पीछे भी नारी का समर्पण रहा है। आज के दौर में भी नारी डॉक्टर, इंजीनियर ,वकील, सांसद, वैज्ञानिक, आई ए एस पदों पर आसीन है। और बखूबी अपना दायित्व निभा रही है। नारी अपने आप में सक्षम है और वह दोहरी भूमिका निभाते हुए भी अपना स्थान बनाए रखे हैं। इन क्षेत्रों में अपना परचम लहराने के बाद भी, वे पारिवारिक, सामाजिक जवाबदारी निभाने का हौसला रखती है।किन्तु उन्हें उनके कार्य के अनुरूप अधिकार कम ही दिए गए।उन्हें उनके अधिकार देना ही सही मायने में नारी सशक्तिकरण है ।उन्हें समाज व राष्ट्र से राजनैतिक, वित्तीय और न्यायिक अधिकार मिलना चाहिए । जिसकी शुरुआत परिवार से होनी चाहिए।
सशक्तिकरण का मतलब यह नहीं कि वे पुरुषों से किसी तरह की होड़ कर रही है। बल्कि पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की अपनी काबिलियत साबित करना चाहती हैं ।तथा वे अधिकार जो पुरुषों को पास हैं वे चाहती हैं उन्हें भी दिए जाने चाहिए । वे अपने दायित्व को निभाते हुए केवल परिवार से सहियोग, समाज से प्रोत्साहन, व शासन से अपनी सुरक्षा की अपेक्षा रखती है।
मैं समझती हूं नारी को सर्वप्रथम स्वयं को मानसिक व शारीरिक तौर पर भी सशक्त करना होगा ताकि, भी आने वाली विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को मजबूत रख सकें तथा हिम्मत व चतुराई से मुकाबला कर सके।
समाज व शासन से आशा करती हूँ , कि वे बिना किसी भेदभाव के महिलाओं को आगे लाएं ,तथा उनकी शारीरिक तथा चारित्रिक सुरक्षा के लिए कुछ नियम बनाकर कठोरता से पालन करवाएं, ताकि वे आगे बढ़ सकें ।
नारी के आगे आने से, तथा उनसे होने वाले शुभ परिणामों से राष्ट्र को अपने विकास में सहायता ही मिलेगी। मुझे लगता है नारी सक्षम है ,सशक्त हैं, राजनीतिक वित्तीय तथा न्यायिक की नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता समाज व शासन को है।आज के समय में बौद्धिक स्तर पर नारी ने स्वयं को साबित किया है उन्हें केवल शारीरिक स्तर पर समाज में सुरक्षा की आवश्यकता है। जो शासन द्वारा उन्हें प्रदान करना चाहिए। महिलाओं के अधिकारों का हनन करने से राष्ट्र को सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक तौर पर हानि होती है , व उसे पीछे ले जाती हैं। समाज और सरकार के साथ-साथ हमें भी नारी को उनके अधिकारों से अवगत कराना चाहिए। शुरुआत परिवार से की जानी चाहिए।
स्वर्णलता नामदेव छेनिया
लेखिका एवं कवियत्री
इटारसी (होशंगाबाद)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
Bht he sundar shabdo me . , naari kya h ye aapne bta diya.. bht bht badhai shubhkaamnaye
Thanks ankita
True, Women are always have been leaders of society since ancient times in India.