
बसन्त
महकने लगी हैं सुरिभ,
पूरवइयाँ मधुमास की।
गुंजायमान वन,उपवन,
दहकने लगी कली पलाश की।।
कल कल बहती नदियाँ,
शुभ्र धवल नीर धारा।
सन्नाटे को चीरती हवा,
झूम उठा नील गगन सारा।।
चहकने लगी बुलबुल,
कूकने लगी हैं कोयल।
प्रकृति ने श्रृंगार किया,
मन हर्षित हैं, घायल।।
हुई शीत की रवानगी,
बसन्त का हुआ आगमन।
सुन्दर शक्तिवान, स्फूर्तिमय,
चहूँ दिशाएँ मनभावन।।
खुला-खुला आकाश,
खिले नजारे खिली धूप।
कोपलें, मंजरियाँ सुगंधित,
कुदरत का सुहाता रूप।।
कलरव करते पंछी,
मस्त बासन्ती बहार।
बेल, बूटे लहलहा रहे,
तरूओं का करें श्रृंगार।।
पीली-पीली गेहूँ की बाली,
पीली-पीली सरसों फूली।
बजने लगी शहनाई,
सजनी सतरंगी से जा मिली।।
दीपक चाकरे ,,चक्कर,,
खण्डवा

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।