
अपाहिज
कुछ दिनों से एक चारपाई दिखने लगी थी
मुहल्ले के गलियारे में अपना घेरा डाले हुए।
दिख पड़ता एक बूढ़ा,गैरजरूरी-सा इंसान
उस खटिया पर डेरा डाले हुए।
अपनी अतिरिक्त जिंदगी का बोझ खींचे
गली के आवारा कुत्तों के बीच वह बूढ़ा
गुजार देता रात खुले आसमान के नीचे।
ठंड जब ज्यादा बढ़ने लगती
खुले आसमान की तारीफों में
लिखी कविताएँ भी तब कसम से
व्यर्थ और बेमानी लगती।
सारा जरूरी सामान घर के अंदर था।
सुरक्षित था।
बस-
उस बूढ़े,महत्वहीन इंसान को बाहर छोड़ा था।
आवश्यकता भी नहीं थी
किसी को उसकी अब।
बेवजह जगह घेरकर बैठा था।
दिक्कत होती थी घर वालों को अक्सर।
कई बार ताने मारे उसे
उकसाया भी घर छोड़ जाने के लिए।
पर मृत पत्नी की यादों से जुड़े उस घर को
छोड़ने के लिए वह सहसा तैयार न था।
तब आसान-सा एक रास्ता
रहमदिल घरवालों के दिमाग में आ गया।
कलयुगी श्रवणकुमार
मुहल्ले के गलियारे में
एक खटिया चुपचाप डाल गया।
अब दिन-रात वह बूढ़ा वहीं सोता है।
रात के दूसरे पहर कुत्तों के साथ
मिलकर वह भी जोर से रोता है।
अपशकुनी है वह
यह जानकर
घर के बाहर सोता है।
कहते हैं,कुत्तों को यमराज दिखाई दे जाता है।
बस यमराज से मिलने की खातिर वह भी
सारी रात जागता रह जाता है।
फिर भी निश्चिन्त था वह
क्योंकि
जानता था
अब यह खटिया खाली नहीं रहेगी कभी।
कल उस जगह बेटा होगा,जहाँ वह है अभी।
– राजेश रघुवंशी
उल्लासनगर, मुंबई

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।