
तेरे नाम की माला जपूं
तेरे नाम की माला जपूं ।
रात दिन कभी न भूलूं ।।
पत्थर मूर्तियों में ढ़ूढ़ा तुझे।
वन-वन छान हारी तुझे ।।
चारो तीर्थ धाम घूम आई ।
कहीं न असली रूप पाई ।।
तेरे ही मंदिर में होते ऐसे काम।।
कहते जिसे अनैतिक काम ।।
धर्म के ठेकेदारों की ठाट देखो।
लूटते-बलगाते , भक्तों को देखो ।।
मुझे नहीं मिलता कहीं शांति ।
जतन किए मैंने भांति-भांति ।।
किसी रूप में दरस दे दो मुझे।
बेचैनी सब मालूम है तूझे।।
जीवन में जो गलतियां हुई हो ।
छिपा नहीं ,सब जानते हो ।।
मैं मूढ़ ,न जानू पूजा के विधान।
तुम्हीं कहो कैसे करूं मैं निदान।।
रूप धर कोई भी आओ द्वार मेरे।
हृदय के दरवाजे खुले हैं मेरे।।
तड़प है दिल में तेरे दरस को।
मैं मूढ़ न जानू शास्त्र और दर्शन ।
अरज है तो बस इतनी मेरी।।
बुझा दे आत्मा की प्यास मेंरी।
मंजुलता
प्रयागराज

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।