
ईमानदारी का भ्रम
अपने गंतव्य स्थल पर पहुंचते ही जिस समय वह बस से अपना सामान समेट कर, उतरने वाला था तो उसी सीट पर पहले से उतर चुके यात्री की घड़ी पड़ी देखी । यह कलाई घड़ी उसी की बगल में बैठे यात्री की थी जिसने बीच रास्ते में गर्मी की वजह से अपनी घड़ी उतार कर अपनी जेब में रख ली थी । जेब से निकलकर यह घड़ी सीट पर गिर गई जिसे बस से उतरते समय सहयात्री उठाना भूल गया । इस घड़ी को सीट पर पड़ा देख, उसने चुपके से उठा लिया ।
लेकिन तभी उसके अन्तर्मन में छिपी इंसानियत जाग उठी और उसने बस स्टैंड में उस यात्री को बुलाकर घड़ी वापस कर दी । वह यात्री धन्यवाद कहकर चला गया । चूंकि वह घड़ी काफी पुरानी थी, इसी कारण इंसानियत के नाते उसने यात्री को लौटा दी । यदि वह घड़ी उस दिन उसके मन को भा जाती तो उसका ईमानदारी का भ्रम भी शायद टूट जाता ।
: मुनीष भाटिया
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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।