
ठंढ भी सुनती कहाँ
उफ़ ये कम्प लाती सर्द का,
अलग अलग मिजाज है ।
बेबस ग़रीबो के लिए तो,
बस सज़ा जैसा आज है ।
कुछ वाहहह वालों के लिए ,
तो मौज का आगाज है ।
कुछ के बदन कपड़े नही ,
कुछ के सिरों पर ताज है ।
ठंढ भी सुनती कहाँ कब,
लाचार की आवाज है ।
है खोजता कोई निवाले ,
चारों तरफ से आज है ।
गुनगुने मखमल में कोई ,
भोगता बस राज है ।
वही मौसम वही दुनिया ,
पर अलग ही अंदाज है ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
ऋतु के अनुसार अति सुंदर रचना ।
हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँँ ।
शिवनाथ सिंह, लखनऊ