काव्य भाषा : नवगीत नई गज़ल लिख – डॉ ब्रजभूषण मिश्र भोपाल

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नवगीत नई गज़ल लिख

सलीका और सऊर हो
तो बहकने का मजा है
वरना तो मय और मैखाना
भी हो जाती सजा है

मय और मैखाने हैं
जब से आम हुए
तब से पीने वाले सभी
हैं बदनाम हुए

पहले पीते थे नजरों से
नजर न आते थे
होते थे मदहोश भी
खबर न बन पाते थे

तौबा कर ले ब्रज मय से
बस मधुशाला लिख
नवगीत ,नई गज़ल लिख
गीत जीने वाला दिख

डॉ ब्रजभूषण मिश्र
भोपाल

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