काव्य भाषा : आत्म मुग्धता – राजीव रंजन शुक्ल,पटना, बिहार

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आत्म मुग्धता

कई लोग होते है इतने आत्ममुग्ध
नहीं रहती उन्हे किसी और की सुध
लगता उन्हे सिर्फ वही और सिर्फ वही
जो कहें वही है सही
आत्ममुग्धता है एक बीमारी
इंसान स्वयं की प्रशंसा करता है भारी
स्वाभिमान और आत्म विश्वास
प्रत्येक मनुष्य का होता खास
पर आत्ममुग्ध प्राणी की अलग होती वाणी
न तो कोई है उनसे ज्ञानी
और न ही कोई उनसे बड़ा प्राणी
बरबोलापन ही रहती उनकी वाणी
उनका ज्ञान उनका अपना संसार
उनके अनुसार है अपरंपार
नहीं कोई उनसे आगे
पर नहीं होता उन्हे पता
उन्हे देख लोग भागे
जब तक आप किसी के लिए रहेगे महत्वपूर्ण
तभी तक आपकी आत्ममुग्धता की करेंगे प्रशंसा पूर्ण
एक समय के बाद
नहीं रहेगी उन्हे आपकी याद
इसलिए
आत्ममुग्ध प्राणी से अनुरोध
दूसरों की भी सुने
न करे उनके हर बात का विरोध
बची रहेगी सम्मान और प्रतिष्ठा
बनी रहेगी आप मे लोगों की निष्ठा ॥

राजीव रंजन शुक्ल,
पटना, बिहार

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