काव्य भाषा : वक्त – चंद्रकांत खुंटे “क्रांति” जांजगीर- चाम्पा

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वक्त

ऐ वक्त! थोड़ा ठहर जा,
पाँव में इत्मीनान रख।
मंद-मंद चलता-चल,
बस मेरे इम्तिहान तक।
न ले मेरे इम्तिहान,किस्मत का मारा हूँ।
डूबने न दे मझधार में,
मैं तो तेरे ही सहारा हूँ।

ऐ वक्त ! थोड़ा सम्भल
क्यो इतनी जल्दी में है?
क्या कोई मंडप सजा है
या तन में लगी हल्दी है ?
जब नही जाना ससुराल तो
चाल कर धीमी पल-पल
तेरी कीमत का तुझे भान नही
पर मेरे लिये तू अनमोल है हर-पल।

ऐ वक्त! थोड़ा थम,ले ले थोड़ा दम।
निज बढ़ा नित मंथर-मन्थर कदम।
क्यो परदेसी बन चला?ठहराव लेके कही जम।
औरों पर न सही,अपनों पर दिखा रहम।
मुझसे ले मेहमान नवाजी,समझ मित्र परम।
पर तू सनकी-मूडी है,निभाएगा नित धरम।
तेरे संग-संग बहु,मेरा ऐसा नही कदम।

ऐ काल ! थोड़ा धीमे कर अपनी चाल।
“यथा नाम तथा गुण” सम न दिखा कमाल।
कंधा से कंधा मिलाकर चल अपनी चाल।
बता अडिग-अनिश्छल रखने का ढाल।
भोज-भांति निगल रहा,चिंतन की कलिकाल।
नित वर्षा हो रही तेरी,कभी तो पड़ जाए अकाल।
पीड़ितों पर रख दया,सुधार चिरकाल के कुचाल।
कैसे पहुँचेगा सन्देशा,बता कोई हो दलाल।
समझ निज पीड़ा को,आकर देख मेरे ये हाल?
तेरी चाह के इंतजार में,हो गया हूँ बर्बस बेहाल।

चंद्रकांत खुंटे “क्रांति”
जांजगीर- चाम्पा (छत्तीसगढ़)

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