

“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”
आज के परिवेश में लोगों के मन के अंदर स्थिरता नही दिखाई पड़ती। मनुष्य के जीवन की हर प्रक्रिया का संचालन उसका मस्तिष्क करता है । हमारी सोच या अवधारणा का सीधा संबंध मस्तिष्क से है । हमारा शरीर हमारे विचारों के अनुरूप ढल जाता है । हमारा मन-मस्तिष्क यदि निराशादी विचारों व अवसादों से घिरा हुआ है तब हमारा शरीर भी उसी के अनुरूप ढल जाता है। वास्तविक रूप में मनुष्य की हार और जीत उसके मनोयोग पर आधारित होती है। मन के द्वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है । स्थिर मन के द्वारा जब कोई कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नए आयाम खुलते चले जाते हैं ।
अस्थिरता का मुख्य कारण है चिंता, अविश्वास, आत्मविश्वास की कमी,धन कमाने की लालसा और दूसरों की तरक्की या उपलब्धि देख के जलन। नशीली वस्तुओं का सेवन भी आज कल मन को कमजोर बनाते जा रहा है। अतीत या भविष्य से परेशान होने के बजाय हमें अपना ध्यान वर्तमान समय पर लगाना चाहिए।हमें अपना आज खुशगवार बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
मन की चंचलता स्थिर करने के लिए ध्यान ही एक मात्र उपाय है जिसको प्राणायाम भी कहते हैं , जिसको रोज थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करने से मन को स्थिर रख सकते हैं। अपने अंदर के लालच, शंका और जलन जैसी भावनाओं पर काबू पाने की कोशिश करनी चाहिए। सच्ची खुशी और स्थिर मन तभी मिलेगा जब हमारे आस पास के लोग भी खुश रहेंगे। इसलिए सबको साथ लेकर, प्रेम व सद्भावना के वातावरण का निर्माण करने से ही मन को शान्ति व स्थिरता मिल पाएगी।
नीलम द्विवेदी
रायपुर , छत्तीसगढ़।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
