काव्य भाषा : खिंची लकीर – नीलम द्विवेदी रायपुर ,छत्तीसगढ़

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खिंची लकीर

आप दिलों के बीच में, गये लकीरें खींच,
अश्क नयन रुकते नहीं, छुपे भीड़ के बीच।

सजन दिलों के बीच में, बनी लकीरें मीत,
नैनन से जल बह रहा, नैनो में नहि भीत।

सजन दिलों के बीच में, खींची बड़ी लकीर,
मैँ जोगिन हूँ नाम की, तू भी बड़ा फकीर।

सजल नैन में पीर है, छोटी भई लकीर,
खींच खींच लम्बी करूँ, नाजुक है तकदीर।

लेती हरि का नाम मैं, मैं जोगिन तू पीर,
नैन नैन से मिल गये, चलती एक लकीर।

नीलम द्विवेदी
रायपुर ,छत्तीसगढ़।

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