काव्य भाषा : नाम बनाम आस्था – विनोद सिन्हा “सुदामा” गया जी

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नाम बनाम आस्था..

कहते हैं..
परिस्थितियाँ चाहे जैसी हो
आस्था कभी धूमिल नहीं होती
अस्था का न तो कोई
धर्म होता है न तो मजहब..
न रंग होता है न ही कोई रूप..
आस्था तो बस मन में बसती है..
जो निश्छल निर्मल गंगा की तरह होती है
जिधर श्रद्धा दिखी उधर बह निकली
आस्था पवित्र लोबान के
महक की तरह
सदा इंसानी व्यक्तित्व को
सुगंधित रखती है
हाँ धर्मानुसार या धर्मानुकूल
कोई न कोई नाम
जरूर मिल जाता है इसे..
वैसे भी धर्म चाहे जो हो
साँसें है तो जीवन है
जीवन है तो जिस्म़ है
जिस्म़ होगा तो जान होगी ..
जान है तो कोई न कोई
नाम तो होना ही है
कोई बेनाम तो रहना नहीं..
जायज या नाजायज़..
आदमी चाहे जिस धर्म का हो
जिस समुदाय या मजहब का हो
पर एक बात है जो सभी पे लागू होती है
सबको अपनी पहचान चाहिए..
कम या ज्यादा.. नाम चाहिए
पर क्या हम कभी सोचते हैं..
नाम में क्या रखा है
आखिर नाम तो नाम है..
फिर राम हो या रहीम…
सीता हो या मरियम.
लक्ष्मी हो या बॉनबीबी
अल्लामा हो या अल्लाउदीन…
करतार हो या गुरविंदर
सभी नाम भर ही तो हैं
पर नहीं.. गौर से देखा जाए तो
हर नाम के साथ एक धर्म जुड़ा है
सनातन काल से हर नामों के साथ
आस्था जुड़ी रही है
हर नाम में जाने कितने व्यक्तित्व छुपे होते है…
राम जहाँ ईश्वर का प्रतीक नाम
तो अल्लामा अल्लाह का
सीता जहाँ देवी रूप का तो
मरियम ईश्वरीय मातृत्व का
जो कुँवारी होकर भी
पवित्र आत्मा की शक्ति से गर्भवती हुई
और यीशु मसीह की माँ बनी
तो फिर इन नामों को लेकर
जनमानस के मन में श्रध्दा क्यूँ नहीं
क्यूँ अज्ञानी बन जाता है इंसान..
और धर्म के नाम पर
अपनी अपनी सोच अलग कर लेता है
क्यूँ ज्ञान की देवी सरस्वती की
नंगी तस्वीर बनती है
क्यू्ँ पैगम्बर का कार्टून बनता है
और हंगामा हो जाता है
क्यूँ गणेश पैऱों के चप्पल पर नज़र आते हैं
क्यूँ लक्ष्मी बम और हनुमान पटाखें बनते
क्यूँ अल्लाह और कुरान के नाम पर
शहर का शहर जल जाता है
क्यूँ शंकर में भगवान नहीं दिखतें
क्यूँ लक्ष्मी को अलग और
बॉनबीबी को अलग समझ लेता है
जिसतरह बॉनबीबी एक धर्म की देवी है
तो लक्ष्मी भी दूसरे धर्म की..
तो फिर इन देवी देवताओं का उपहास क्यूँ
धर्म और आस्था के नाम पर इन नामों का व्यवसायीकरण क्यूँ..
चंद काग़ज के टूकड़ों के लिए
आस्था और जनमानस की
भावनाओं से खिलवाड़ क्यूँ
फिर खिलवाड़ करने वाले
चाहे उसी धर्म उसी मजहब के ही क्यू्ँ न हो
प्रश्न यह है कि खिलवाड़ ही क्यूँ
और आखिर किस लिए..
और अगर करते या कर भी रहे तो
बस नाम के लिए ही न…
तो फिर नाम में क्या रखा…
कुछ भी रख लो…
प्रेम रखो मुहब्बत रखो अराधना रखो
इन नामों से बढकर
और इनसे अच्छा तो कुछ है नहीं
न किसी की भावना को ठेस
न किसी की आस्था पर प्रहार…
और यह कैसी विडंबना है
कि हर दीवाली पर लोग जिस लक्ष्मी की
पूजा करते हैं उसी दीवाली पर
हम लक्ष्मी बम फोड़ते हैं
जिससे लक्ष्मी की तस्वीर
छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर जाती है..
तो कैसी लक्ष्मी कैसी आस्था
सोचिए.मननयोग्य तो है ही
साथ चिंतनीय भी है
भांडो का क्या उनका तो
काम ही नाच गा कर पेट भरना है..

विनोद सिन्हा “सुदामा”
गया जी

#बॉनबीबी-एकमात्र विशुद्ध मुस्लिम देवी हैं,जिन्हें बंगलादेश में हिंदू मुस्लिम दोनों धर्म के लोग पूजते हैं

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