काव्य भाषा : दोहे -विनोद शर्मा, गाजियाबाद

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दोहे

हुआ जन्म जब पूत का,
माँ के गम हुए दूर |
पाया है पुत्र रत्न धन,
कुटुम्ब का वह शूर ||

माँ गम में डूबी हुई,
सुन बेटों की बात |
बँटवारा निश्चत हुआ,
कौन निभाएँ साथ ||

इंतज़ार माँ कर रही,
बैठी अपने द्वार |
बेटा आए कौन सा,
ले पहले का बार ||

चिन्ता में डूबी रही,
बूढ़ी माँ दिन रात |
सो न सकी यह सोचकर,
कौन करे अब बात ||

ताने भी सुनने मिले,
नहिं दे सकी जबाव |
बहुएँ भी ऐसी मिली,
पुत्रों पर है दबाव ||

सम्पत्ति के संग संग,
माँ भी दी है बाँट |
प्यार लुटाया जिसने,
उसको नहिं है खाट ||

© विनोद शर्मा,
आर-54, वकील कॉलोनी,
प्रताप विहार, सेक्टर-12
गाजियाबाद

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