काव्यभाषा : सपनों में बुना दौशाला -शीला गहलावत सीरत चंडीगढ़

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सपनों में बुना दौशाला

सपनों की इस दुनिया में
मैं जब, मैं सो जाता हूँ मैं

ओढ़ दौशाला सपनों का
मोती महल बुन जाता हूँ

बैठ के, जब मैं सोचता हूँ
सोच करके भी सोचता हूँ

कैसी ये रंग बिरंगी दुनिया
रंग इस दुनिया के सोचता हूँ

मेले को छोड़ इक दिन जाना
क्यूँ भरता इसमें रंग सोचता हूँ

सारा दिन इक महल मैं बुनता हूँ
शतरंज उसमें मैं खेल खेलता हूँ

हारी बाजी को जीत जाता हूँ
रंग उसमें मैं गुलाबी भरता हूँ

मन ये, मैं मनवा समझाऊ
पाई-पाई जोड़ महल बनाउं

सारी रात सपनों को बुनता हूँ
इन्द्रधनुष के रंगों से बुनता हूँ

ओढ़ “सीरत” सपनों का दौशाला
जीवन को सफल बना मधुबाला

शीला गहलावत सीरत
चंडीगढ़

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